अस्थी विसर्जन पूजा
धरती पर जिस किसी चीज का जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। इसलिए धरती पर मृत्यु केवल एकमात्र सत्य है, बाकी सब मिथ्य। शरीर में जब तक सांस है तब तक हमारा वजूद है, जिस दिन शरीर से सांस का आवागमन थम जाता है, शरीर से आत्मा निकल जाती है और हमारा अस्तित्व खत्म हो जाता है। हिन्दू पुराणों में भी मनुष्य के शरीर की महत्व नाम मात्र बताया गया है, यदि कुछ महत्वपूर्ण है तो वह है आत्मा। हिंदू धर्म में मृत्यु पश्चात दाह संस्कार किया जाता है। मृत्यु से लेकर डाह संस्कार और फिर उसके बाद भी कई सारे रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। मृत शरीर को पूरे पारंपरिक ढंग से विदा किया जाता है।
गंगा में क्यों किया जाता अस्थियों को विसर्जित
एक पौराणिक कथा के अनुसार गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर आई हैं। हिन्दू धर्म में इस नदी को बेहद पवित्र माना जाता है। इस महान नदी को गंगा देवी का दर्जा प्राप्त है। मान्यता है कि गंगा श्रीहरि विष्णु के चरणों से निकली हैं और भगवान शिव की जटाओं में आकर बसी हैं। श्रीहरि और भगवान शिव से घनिष्ठ संबंध होने के कारण गंगा को ‘पतित पाविनी’ भी कहा जाता है।
मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है। माना जाता है कि प्रत्येक हिंदू की अंतिम इच्छा होती है कि उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थियों को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। गंगा में अस्थियों के विसर्जन के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि अगर किसी का दाह संस्कार के बाद उसकी अस्थियां जब तक किसी पवित्र नदी में विसर्जित नहीं की जाती है तब तक इंसान की आत्मा को शांति नहीं मिलती है।
माना जाता है कि अगर किसी कि मृत्यु गंगा के समीप होती है तो उसे मरणोपरांत सीधा बैकुंठ यानी स्वर्ग नसीब होता है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु गंगा से दूर या अन्य देश में होती है तो उसकी अस्थियों का विर्सजन करने के बाद ही स्वर्ग पहुंचता है। पद्मपुराण में कहा गया है जिस व्यक्ति की मृत्यु गंगा में होती है उसके सभी पापों का क्षय हो जाता है और श्रीहरि के चरणों में स्थान प्राप्त करता है। महाभारत की एक मान्यता के अनुसार जब तक गंगा में व्यक्ति की अस्थियां रहती हैं तब तक वह स्वर्ग का अधिकारी बना रहता है।